LAKSHAGRAH (KRISHNA KI ATMAKATHA -IV) (Hindi Edition)
Sharma, Manuमैं नियति के तेज वाहनपर सवार था। सबकुछ मुझसे पीछे छूटता जा रहा था। वृंदावन और मथुरा, राधा और कुब्जा-सबकुछमार्ग के वृक्ष की तरह छूट गए थे। केवल उनकी स्मृतियाँ मेरे मन से लिपटी रह गई थीं।कभी-कभी वर्तमान की धूल उन्हें ऐसा घेर लेती है कि वे उनसे निकल नहीं पाती थीं। मैंअतीत से कटा हुआ केवल वर्तमान का भोक्ता रह जाता।
माना कि भविष्य कुछनहीं है; वह वर्तमान की कल्पना है, मेरी अकांक्षाओं का चित्र है—और यह वह है, जिसेमैंने अभी तक पाया नहीं है, इसलिए मैं उसे एक आदर्श मानता हूँ। आदर्श कभी पाया नहींजाता। जब तक मैँ उसके निकट पहुँचता हूँ, हाथ मारता हूँ तब तक हाथ में आने के पहले हीझटककर और आगे चला जाता है। एक लुभावनी मरीचिका के पीछे दौड़ना भर रह जाता है।
कृष्ण के अनगिनत आयामहैं। दूसरे उपन्यासों में कृष्ण के किसी विशिष्ट आयाम को लिया गया है। किंतु आठ खंडोंमें विभक्त इस औपन्यासिक श्रृंखला ‘कृष्ण की आत्मकथा’ में कृष्ण को उनकी संपूर्णताऔर समग्रता में उकेरने का सफल प्रयास किया गया है। किसी भी भाषा में कृष्णचरित कोलेकर इतने विशाल और प्रशस्त कैनवस का प्रयोग नहीं किया है।
यथार्थ कहा जाए तो‘कृष्ण की आत्मकथा’ एक उपनिषदीय कृति है।
‘कृष्ण की आत्मकथाश्रृंखला के आठों ग्रंथ’
नारद की भविष्यवाणी
दुरभिसंधि
द्वारका की स्थापना
लाक्षागृह
खांडव दाह
राजसूय यज्ञ
संघर्ष
प्रलय